ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका, विपक्ष में घबराहट

देश के 21 राजनीतिक दलों को नींद से जागकर अचानक ख्याल आया है कि ईवीएम मशीन में गड़बड़ी कराकर सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता में वापस आने की कवायद कर सकती है। विपक्षी दलों ने इसी आशंका में चुनाव आयोग से 50 प्रतिशत ईवीएम की वीवीपैट से सत्यापन की मांग की है। इसे तर्कों के आधार पर अव्यवहारिक बताकर चुनाव आयोग खारिज कर चुका है। विपक्षी दल आशंका से भरे इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले जा चुके हैं। वहां से भी संतुष्ट नहीं हो सके। अब जब पहले चरण के चुनाव हो चुके हैं, तब मशीनों के इस तरह के सत्यापन की बात करना विपक्षी दलों की बचकानी हरकत ही लगती है।


पूर्व के चुनावों में उन्होंने इसके इस्तेमाल के खिलाफ धरना-प्रदर्शन तो दूर बयान तक जारी नहीं किया। उस वक्त अन्य विपक्षी दलों को देश का लोकतंत्र खतरे में नजर नहीं आयाअब अचानक लोकतंत्र के लिए खतरा माना जा रहा है। चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस मुद्दे पर कांग्रेस की हालत सांप-छछंदर जैसी है, जिसे ना तो उगला जा सकता है और ना ही निगला। विपक्षी दलों के मुद्दों को समर्थन देना कांग्रेस की मजबूरी बन चुकी है। विपक्षी दलों ने कांग्रेस की सियासी जमीन को कमजोर देखकर पहले ही अपने राज्यों में गठबंधन करने से इंकार कर दिया। कांग्रेस की कमजोर हालत को देखकर कोई भी दल अपने राज्य में सत्ता के बंटवारे के लिए तैयार नहीं हुआ। कांग्रेस को चुनाव के बाद यदि सत्ता की थोड़ी आस बंधती भी है तो इन्ही क्षेत्रीय दलों के भरोसे। कांग्रेस के केंद्र में सत्ता में रहने के दौरान ही ईवीएम का चुनावों में उपयोग होना शुरू हुआ था। उस वक्त तक कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों को इस आधुनिक तकनीक में कोई कमी नजर नहीं आई। तब किसी ने सवाल नहीं उठाया कि ईवीएम के जरिए मतों में सेंध लगाई जा सकती है। हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को दाल को काला तक नजर नहीं आया, अब पूरी दाल ही काली बताई जा रही है। रहा सवाल मशीनों में तकनीकी खराबी का तो कांग्रेस के दौर में भी कभी-कभी यह समस्या रही है। हर तकनीक में सुधार की संभावना होती है। तकनीकी तरक्की का राज यही है। लगातार सुधार की वजह से ही भारत की आईटी तकनीक विश्व में परचम फहरा रही है।


भाजपा सरकार के खिलाफ युद्धक विमान राफेल के जरिए भ्रष्टाचार साबित करने का मुद्दा भी सफल नहीं हो सकाराफेल को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर भी विपक्षी दल एकजुट नहीं है। यही वजह है सभी दलों ने मिलकर संसद से लेकर सड़क तक इस मुद्दे पर एक दिन भी बंद या धरने-प्रदर्शन का आयोजन नहीं किया। यहां तक की विपक्षी दलों के महागठबंधन की कवायद के दौरान भी इस मुद्दे को नहीं उठाया गया। सुप्रीम कोर्ट से भी राफेल के मुद्दे पर कांग्रेस को कुछ राहत नहीं मिल सकी। देश में ज्यादातर राज्यों में विपक्षी क्षेत्रीय दलों का मुकाबला भाजपा से होना माना जा रहा है। यही वजह है कि क्षेत्रीय दल चुनाव आयोग को लेकर ज्यादा मुखर हो रहे हैं। विपक्षी दलों को यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे बेबुनियाद मुद्दों पर ना तो मतदाताओं को बरगलाया जा सकता है और ना ही चुनाव जीतने के मंसूबे पूरे किए जा सकते हैं। मतदाताओं के सामने जब तक हकीकत में किए गए विकास के दावे पेश नहीं किए जाएंगे तब विपक्षी दलों के तमाम दावे हवाई ही साबित होंगे